6.3.13

अलग अलग कीबोर्ड

मेरी प्रतीक्षा को निराशा मिली। यद्यपि मैं लगभग डेढ़ वर्ष पहले से ही आईफ़ोन में हिन्दी कीबोर्ड का उपयोग कर रहा हूँ पर विण्डो व एण्ड्रायड फ़ोनों में हिन्दी के कीबोर्डों का स्वरूप कैसा होगा, यह उत्सुकता मन में  लिये डेढ़ वर्ष से प्रतीक्षा कर रहा था। यदि इन दोनों फ़ोनों में हिन्दी कीबोर्ड पहले आ गये होते तो संभव था कि कुछ पैसे बचाने के लिये मैं आईफ़ोन का उपयोग न कर के इनमें से किसी एक के अच्छे मॉडल का उपयोग कर रहा होता। मेरे लिये आईफ़ोन ख़रीदने का प्राथमिक कारण उस पर हिन्दी कीबोर्ड का आना था, यदि उसने भी देर की होती तो एप्पल से जान पहचान ही न हुयी होती। आज एक नहीं, चार और एप्पल उत्पाद ले चुका हूँ और बहुत संतुष्ट भी हूँ। सीधा सा हिसाब था, एप्पल ने हिन्दी का सम्मान किया, इस कारण मेरा परिचय बढ़ा और अब प्यार हो गया है, इसकी गुणवत्ता से। संभवत एप्पल को ज्ञात था कि मुझ तक पहुँचने का मार्ग हिन्दी से होकर जाता है।

ऐसा नहीं है कि विण्डो व एण्ड्रायड फ़ोनों ने हिन्दी के महत्व को समझा नहीं। समुचित समझा पर बड़े देर से समझा। बस कुछ सप्ताह पहले ही दोनों के हिन्दी कीबोर्ड आ गये। पर अब दोनों के हिन्दी कीबोर्डों को देख कर लग रहा है कि दोनों ने ही अपनी सुविधानुसार कीबोर्ड बना दिया, बिना अधिक विश्लेषण किये हुये। इस निर्णय से न हिन्दी टाइप करने वालों का कोई लाभ होने वाला है और न ही इन दोनों कम्पनियों को हिन्दी के इस बाज़ार में कोई सफलता मिलने वाली है। मेरा आशय किसी पर कटाक्ष करने का नहीं है या आलोचना में उद्धत होने का नहीं है, पर हिन्दी कीबोर्ड के उद्भव में भिन्न भिन्न राग सुना रहे लोगों को यह बताने का है कि बिना मानकीकरण न आपका भला होगा और न ही हिन्दी का। और साथ ही साथ मेरे लिये भी भविष्य में आईफ़ोन छोड़ पाने की संभावना पूरी तरह समाप्त हो जायेगी।

विज्ञ कह सकते हैं कि भले ही विण्डो में हिन्दी कीबोर्ड अभी आया हो पर एण्ड्रायड में तो लगभग एक वर्ष से हिन्दी कीबोर्ड है। निश्चय ही हिन्दी कीबोर्ड था, पर वह वाह्य एप्स के रूप में था, तनिक छोटे आकार का था और उपयोग में बहुत ही कष्टकर। जब कभी भी उससे टाइप करने का प्रयास किया, प्रवाह बाधित रहा, कारण निश्चय ही उनका वाह्य आरोपित होना होगा, हर बार ओएस की दीवार भेद कर जाने और वापस आने में समय तो लगता ही है। न ही उससे प्रभावित हुआ जा सकता था और न ही उससे लम्बे समय तक टाइप किया जा सकता है। यद्यपि अभी भी गूगल हिन्दी इनपुट के नाम से जो एप्स आया है, वह भी वाह्य एप्स के रूप में ही आया है, पर गूगल के द्वारा तैयार होने पर उसका समन्वय ओएस से कहीं गहरा होगा, तनिक तीव्र होगी उसकी गति औरों की तुलना में। प्रसन्नता तब और अधिक होती जब ओएस के अगले संस्करण में हिन्दी के कीबोर्ड को सम्मिलित किया गया होता।

जब नोकिया का सी३ फ़ोन उपयोग में लाता था तो उसमें एक वाह्य हिन्दी कीबोर्ड था। लगा था कि नोकिया के पास यह तकनीक होने के कारण विण्डो के नये फ़ोनों में पहले दिन से ही हिन्दी आयेगी। ऐसा नहीं हुआ, कई बार जाकर उसमें हिन्दी खोजी तो नहीं मिली। बड़ा दुख भी हुआ और आश्चर्य भी। जब विण्डो ५ के फ़ोन से आईरॉन का हिन्दी कीबोर्ड उपस्थित था, नोकिया सी३ में हिन्दी की बोर्ड उपस्थित था तो विण्डो के नये फ़ोनों में उनका होना स्वाभाविक ही था। अच्छा हुआ विण्डो फ़ोनों में ओएस स्तर हिन्दी कीबोर्ड आ गया है पर उसका भी अवतरण प्रभावित नहीं कर पाया।

जब भी मैं कहता हूँ कि हिन्दी का कीबोर्ड ओएस के स्तर पर होना चाहिये तो मेरा संकेत दो लाभों की ओर है। पहला तो इससे कीबोर्ड की गति बढ़ जाती है, उसका अन्य एप्स से समन्वय गाढ़ा हो जाता है, टाइपिंग निर्बाध गति से होती है और किसी समस्या की संभावना भी नहीं होती है। दूसरा, ओएस के अपग्रेड होने पर कीबोर्ड भी स्वतः ही अपग्रेड हो जाता है और एप्स के अलग से अपग्रेड होने की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती है। यही कारण है कि ओएस में ही कीबोर्ड का होना अधिक लाभदायक है और साथ ही साथ अधिक प्रभावी भी।

कहने को तो गूगल हिन्दी इनपुट में फ़ोनेटिक व्यवस्था भी है, यही कि आप अंग्रेज़ी में टाइप करें और वह स्वतः ही बदल कर हिन्दी में बदल जायेगा। पहले भी बारहा के उपयोग से लैपटॉप पर हिन्दी बहुत दिनों तक टाइप भी की है, पर गति धीमी होने के कारण और हिन्दी शब्दों को अंग्रेज़ी की बैसाखी पहनाने के कारण उसका त्याग कर दिया। उसके स्थान पर हर लैपटॉप में उपस्थित देवनागरी इन्स्क्रिप्ट में टाइप करना सीखना प्रारम्भ में तनिक कठिन लगा पर एक सप्ताह में ही गति आ गयी। कहने का आशय यह कि फ़ोनेटिक टाइपिंग का उपयोग तब तक नहीं करना चाहिये जब तक कोई सीधा साधन उपस्थित हो।

आइये तीन प्रमुख मोबाइल उत्पादकों का हिन्दी कीबोर्ड से संबंधित असंबद्धता देखें। एक तथ्य तो स्पष्ट दिख रहा है कि कोई एक उत्पाद आपने ले लिया और उस पर हिन्दी टाइपिंग करते हुये रम गये तो भविष्य में कोई अन्य मोबाइल ख़रीदने का साहस नहीं कर पायेंगे, एक में ही अटक कर रह जायेंगे। तीनों में हिन्दी कीबोर्ड के भिन्न भिन्न प्रकार आपके लिये बाधा बनकर खड़े रहेंगे। दूसरा, यदि आप लैपटॉप पर देवनागरी इन्स्क्रिप्ट में टाइप करते हैं तो आपको विण्डो या एण्ड्रायड में टाइप करने के लिये एक अतिरिक्त और सर्वथा भिन्न प्रारूप समझना पड़ेगा। दों भिन्न प्रारूपों में भ्रम की संभावना सदा ही बनी रहेगी। आपको बताते चलें कि देवनागरी इन्स्क्रिप्ट प्रारूप ही भारतीय मानक है और हर लैपटॉप में उपस्थित भी।

जब मैंने कहा था कि प्रतीक्षा ने निराश किया है, तब मेरा आशय प्रमुख मोबाइल उत्पादकों के द्वारा भिन्न दिशाओं में भागा जाना था। अभी ब्लैकबेरी १० का पदार्पण होना है पर उसके इतिहास को देख कर यह लगता नहीं है कि वह भी हिन्दी कीबोर्ड के क्षेत्र में अपना राग नहीं अलापेगी।

पिछले ७ वर्षों से मेरा मार्ग अब तक देवनागरी इन्स्क्रिप्ट प्रारूप से होकर आया है, आईफ़ोन के अतिरिक्त अन्य सबने लगभग यह सिद्ध कर दिया है कि चाहे मानक कीबोर्ड जायें भाड़ में पर वे अपने तरीक़े से भारतीयों से हिन्दी टाइप करवायेंगे। यदि ऐसा है तो बड़ा ही कठिन हो जायेगा, तीन चार भिन्न प्रकार के कीबोर्डों से तो हिन्दी में भी नये वर्ग खड़े हो जायेंगे। इतने वर्षों के प्रयास के बाद कम से कम हिन्दी के कीबोर्ड आ रहे हैं, पर उनका भी क्या लाभ जो मानक न हों और उपयोगकर्ता को नये प्रकार से सीखने को विवश करें।

पता नहीं कि नये प्रारूप के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार है या सुविधा है वर्णमाला को एक क्रम में सजा देने की। सबको यह तो लगता है कि बिना हिन्दी कीबोर्ड उनका विकास और फैलाव बाधित रहेगा पर किस प्रकार से उसे प्रस्तुत करना है, इस पर कोई समुचित विचार नहीं हुआ है। मेरा केवल एक ही विनम्र अनुरोध है कि कृपा कर मानक देवनागरी इन्स्क्रिप्ट कीबोर्ड को ही साथ लेकर चले।

49 comments:

  1. बहुत उपयोगी. अगर यह लेख पहले पढ़ने को मिल जाता तो एण्ड्रॉयड फोन खरीदने से बच जाता.

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  2. एक ही बार में पूरा आलेख पढ़ गया ,पहले फिल्मों के माध्यम से हिंदी लोकप्रिय हई अब बाज़ार के माध्यम से सुखद आश्चर्य हुआ |आपके आलेखों से उम्दा तकनीकी जानकारी भी मिलती है |आभार सर |

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  3. यह बहुत कष्टप्रद अनुभव है. मानकीकृत कीबोर्ड के न होने से हर बार प्रयोग करते रहना पड़ता है और गति व गुणवत्ता का ह्रास होता है. फोंट्स की कमी भी खलती है.

    अच्छी विवेचना.

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  4. की-बोर्ड तीनों ही बढ़िया हैं, फोनेटिक, इन्स्क्रिप्ट और रेमिंग्टन. मोबाइल कम्पनियों को इन तीन तरह के की-बोर्ड के मानक स्वरूप तैयार कर प्रस्तुत करना चाहिये.

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  5. तीनों की-बोर्ड ही बढ़िया हैं, फोनेटिक, इन्स्क्रिप्ट और रेमिंगटन. मोबाइल कम्पनियों को इनका मानकीकरण करना चाहिये. अभी नहीं तो आने वाले समय में करेंगी अवश्य.

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  6. यह जानकारी बहुत आवश्यक थी ..आगे काम आएगी !

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  7. .
    .
    .
    आपकी बात एकदम सही है।


    ...

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  8. बहुत कम जानकारी है विषय में ...... यह विस्तृत विवेचना बहुत कुछ समझाती है , आई फोन में हिंदी लिखने की कोशिश की है बस , नई तकनीक के साथ हिंदी का प्रयोग सहज सरल होगा तो निश्चित रूप से यह हमारी हिंदी के लिए भी अच्छा ही है ..

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  9. यह जानकारी आगे काम आएगी !

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  10. अब हम तो रेमिग्‍टन हिन्‍दी टाइप राइटर का प्रयोग करते हैं इसकारण मोबाइल से नवीन टाइप प्रणाली अपनाना कठिन काम लगता है।

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  11. मानक कुंजीपटल अगर उपयोग में ना लाया गया तो हिन्दी प्रेमियों को केवल आईओएस या ब्लैकबैरी के सहारे ही रहना पड़ेगा ।

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  12. यह तो मुश्किल है फिर.।

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  13. ...मैं समझता हूँ कि विकल्प के लिहाज़ से android अभी भी सबसे आगे है.आज यहाँ हिंदी की-बोर्ड के ढेर विकल्प हैं तो गूगल हिंदी इनपुट ने और आसानी कर दी है.पहले मैं multiling keyboard से बढ़िया काम चला रहा था,अब गूगल हिंदी इनपुट बढ़िया लग रहा है.
    जल्द ही गूगल हिंदी इनपुट पर विस्तार से !!

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  14. देवनागरी के मुकाबले बारहा में हिंदी टाईप करना थोडा तकलीफदेह लगता है .

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  15. बहुत अच्छी जानकारी दी- है यहाँ तो लैप्टॉप में गूगल हिन्दी इनपुट का ही सहारा लेती हूँ

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  16. अभी तो गूगल हिंदी इनपुट से काम चला रहे है,फिर भी भविष्य के लिए उपयोगी जानकारी,,,,

    Recent post: रंग,

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  17. ओह!! समस्या के गम्भीर पक्ष को उजागर किया, काश सभी उत्पादक समय रहते चेत जाय!!

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  18. सार्थक सन्देश..

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  19. चलिए हिंदी आ रही है .भाषा विभाग विज्ञान और तकनीकी शब्दावलीआयोग में भी अदबदाकर यह गड़बड़ की गई मिथ रचा गया विज्ञान लेखन मानक शब्द कोष के अभाव में चल नहीं सकता है

    .लेकिन मानक शब्द संस्कृतनिष्ठ गढ़े गए .

    जन

    प्रिय विज्ञान अपनी गति से दौड़ रहा है .संस्कृत निष्ठ हिंदी लिखने वाले हतप्रभ हैं .इधर नए शब्द चल पड़े हैं -रिसर्चरों ,साइन्-टिस्तों ये सब करामात NBT की है हमने इनमें संशोधन किया है -

    रिसर्चदान ,साइन्सदान ,विज्ञानी .पारिभाषिक शब्द व्याख्या चाहते हैं -जैसे प्लासान्टा (प्लेसेनटा ,placenta)को पुरइन या खेड़ी (गर्भनाल )कहने से काम नहीं चलेगा ,बतलाना पडेगा यह गर्भाशय

    का वह हिस्सा है जो गर्भस्थ को सुरक्षा और भोजन मुहैया करवाता है .

    आपने की -बोर्ड से तल्ल्कुक रखने वाला बुनियादी सवाल उठाया है .एक मर्तबा इन सूचना प्रोद्योगिकी निगमों को भी लिख देखें .

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  20. सर जी सार्थक समीक्षा और उपयोगी भी |

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  21. हिंदी की-बोर्ड की तो पूछिए मत! अभी भी लोगों को तमाम समस्याएँ होती रहती हैं. और गनीमत है कि विंडोज़ फ़ोन 8 में हिंदी आ गया. विंडोज फ़ोन 7 में तो हिंदी कहीं से दिखती भी नहीं थी!

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  22. पूर्ण सहमत हू आपसे , उंगलिया जहाँ एक बार सेट हो गई उन्हे फिर नये कीबोर्ड पर ढालना बहुत टेडी खीर है नतीजन टाइपिंग की ग़लतियाँ और समय अधिक कणजूम होना !.

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  23. बहुत ही सार्थक जानकारी की प्रस्तुति,हिंदी के कीबोर्ड की समस्या लगता हिया की बनी ही रहेगी.

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  24. देवनागरी इन्स्क्रिप्ट प्रारूप ही हिन्‍दी के मानकीकरण के अनुरुप है।

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  25. मानकीकरण के बिना बहुत कुछ अधूरा रह जाता है

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  26. उपयोगी जानकारी

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  27. सच तो ये है कि हिंदी का कोई बाली-वारि‍स नहीं है इसलि‍ए बेचारे हिंदी प्रेमी ही खुद हाथ पैर मारते चले आ रहे हैं. वि‍देशी निर्माताओं को जैसे तैसे उत्‍पाद बेचने होते हैं सो उन्‍हें जो ठीक लगता है, करते हैं. जब स्मार्ट मोबाइल शुरू हुए तो केवल विंडोज मि‍लता था और आईरॉन पहला हिंदी कीबोर्ड था जो मैंने प्रयोग कि‍या. बाद में दुनि‍या बदलने लगी और सभी तरह के लोग हिंदी कीबोर्ड लाने लगे.

    मैं बहुत पहले सोचता था कि टाइपराइटर asdf के बजाय abcd क्‍यों नहीं अपनाते कीबोर्ड, मोबाइलों के आने से यही हुआ. पर दुनि‍या रेमिंगटन और इंस्‍क्रि‍प्‍ट में बंट गई. अब कखगघ कीबोर्ड भी आ गए हैं. सभी कुछ ठीक हो रहा है पर बेतरतीब ढंग से. सरकार को कोई सुध नहीं कि चार पैसे इस दि‍शा में भी खर्च करके सलीके से कुछ काम मानकीकरण का भी करे. एक सीडैक बैठा रखा रखा है जो भाड़ झोंक रहा है.

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  28. अब 'आखिरी उम्र में मुसलमॉं' होने की हिम्‍मत नहीं रही। इसीलिए, पोस्‍ट भी पूरी नहीं पढ पाया। इतना भर कह सकता हूँ कि हिन्‍दी की-बोर्ड की भिन्‍नता ने हिन्‍दी का अहित ही किया। अंग्रेजी की-बोर्ड की तरह ही इसका कोई एक मानक की-बोर्ड होता तो भला होता।

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  29. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल गुरूवार (07-03-2013) के “कम्प्यूटर आज बीमार हो गया” (चर्चा मंच-1176) पर भी होगी!
    सूचनार्थ.. सादर!

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  30. सार्थक और उपयोगी जानकारी
    साभार...........

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  31. स्मार्टफोन तथा टैबलेट जैसे टचस्क्रीन डिवाइसों पर फोनेटिक (ट्राँसलिट्रेशन) का कंसैप्ट मुझे पूरी तरह बकवास लगता है। कम्प्यूटर के कीबोर्ड पर हिन्दी वर्ण अंकित न होने से फोनेटिक औजारों के प्रयोग का कुछ औचित्य तो समझ भी आता है पर मोबाइल डिवाइसों के ऑनस्क्रीन कीबोर्ड पर सभी वर्ण सामने होते हैं जिन्हें हमें देख-देखकर दबाना है फिर अंग्रेजी की बैसाखी का सहारा क्यों लिया जाय। इनके लिये तो मानक इन्स्क्रिप्ट कीबोर्ड ही सर्वश्रेष्ठ है।

    वैसे भी मैंने आजमाकर पाया कि गति की दृष्टि से भी रोमन वाले जुगाड़ कीबोर्ड बेकार हैं। उदाहरण के लिये 'श' जैसे कई वर्ण इन्स्क्रिप्ट में केवल एक बटन दबाने से लिखे जायेंगे वहीं रोमन वाले में कई-कई कुंजिंयों से।

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  32. लैपटॉप और मोबाइल के आधुनिकतम तकनीक की जानकारी आपके लेखों में मिलती रही है।
    विशेषकर, हिंदी के प्रयोग से जुडी नई तकनीक के बारे में बहुत कम लिखा जा रहा है।
    इस प्रयास के लिए आप साधुवाद के पात्र हैं।

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  33. उम्मीद है विभिन्न फोन कंपनी वाले इस पोस्ट को पढ़कर अपने की बोर्ड्स में संभावित सुधार कर लें.
    मैं तो अभी तक अपने फोन में हिंदी टंकण की अभ्यस्त नहीं हो पायी.

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  34. बहुत बहतु बधाई की आज हिंदी अपने इस मुकाम तक तो पंहुंच गयी है लेकिन आज भी हिंदी को अंग्रेजी की ऊँगली पकड़ कर चलना पद रहा हैं काश हिंदी अपने पैरों पर पूर्ण रूप से खडी हो पाती इसमें सबसे ज्यादा दोष हमारी सरकार का है वो तो भला हो सोशियल नेटवर्कों का जिनके कारण हिंदी की रफ़्तार में वृद्धि हुई है

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  35. विकल्प जरूर होने चाहियें ... जिसको जैसी सुविधा हो वो उसे अपना सके ...
    आपका शोध ओर ज्ञान इस विषय पे ज्यादा है ... इन कंपनियों से संपर्क कर के कुछ निर्देश दीजिए .. शायद ये भी समझ जाएँ ...

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  36. honestly ....very technical ....:))
    and very useful .

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  37. वाह गजब की जानकारी एन्ड्राएड में हिंदी इनपुट फिर भी ठीक है क्योंकि हम तो कुर्तीदेव वाले हैं

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  38. की -बोर्ड इवोल्व कर रहा है विकास के सौपानों से गुजर रहा है किसी विज्ञ का इस तरफ ध्यान गया ,निगमों से संपर्क हुआ तो मानकीकरण भी अवश्य होगा .आपको लिखना चाहिए सभी सूचना

    प्रोद्योगिकी निगमों को कुछ होगा ज़रूर .किसी का ध्यान इस रूप में इधर गया नहीं है कंपनी अपने व्यावसायिक हित के लिए कुछ भी करेगी एक बार उसे जाँच जाए -बात काम की है पते की है .

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  39. Thanks, so you are promoting Apple, Pravin Bhai? :-) Just Kidding. Let me see when I am going to buy my first Smart phone.

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  40. बहुत उपयोगी जानकारी...

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  41. Pravin bhai ,do some thing for the standardization of Hindi key board.

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  42. निश्चय ही हिन्दी कीबोर्ड था, पर वह वाह्य एप्स के रूप में था, तनिक छोटे आकार का था और उपयोग में बहुत ही कष्टकर। जब कभी भी उससे टाइप करने का प्रयास किया, प्रवाह बाधित रहा, कारण निश्चय ही उनका वाह्य आरोपित होना होगा, हर बार ओएस की दीवार भेद कर जाने और वापस आने में समय तो लगता ही है।

    आप कौन सा कीबोर्ड प्रयोग कर रहे थे? मैंने गो कीबोर्ड प्रयोग किया है एक साल और ऐसी कोई समस्या नहीं रही। अब स्विफ़्ट-की में हिन्दी समर्थन आ गया है तो उसको प्रयोग करता हूँ और ऐसी कोई समस्या उसमें भी नहीं है। आकार की समस्या स्क्रीन साइज़ और रेज़ोल्यूशन पर भी निर्भर करती है।

    यद्यपि अभी भी गूगल हिन्दी इनपुट के नाम से जो एप्स आया है, वह भी वाह्य एप्स के रूप में ही आया है, पर गूगल के द्वारा तैयार होने पर उसका समन्वय ओएस से कहीं गहरा होगा, तनिक तीव्र होगी उसकी गति औरों की तुलना में।

    ऐसा कुछ नहीं है, गूगल भी जो एप्प बनाता है वही API प्रयोग करता है जो अन्य एप्प निर्माताओं को उपलब्ध होती है। जो फर्क हो सकता है वह सिर्फ़ कोड की क्वालिटी का हो सकता है पर वह तो किसी भी दो या अधिक एप्प में हो सकता है।

    जब भी मैं कहता हूँ कि हिन्दी का कीबोर्ड ओएस के स्तर पर होना चाहिये तो मेरा संकेत दो लाभों की ओर है। पहला तो इससे कीबोर्ड की गति बढ़ जाती है, उसका अन्य एप्स से समन्वय गाढ़ा हो जाता है, टाइपिंग निर्बाध गति से होती है और किसी समस्या की संभावना भी नहीं होती है।

    यह बात सिर्फ़ आईओएस पर लागू होती है क्योंकि एप्पल नेटिव कीबोर्ड नहीं लगाने देता (जहाँ तक मुझे पता है)। विण्डोज़ फोन का मुझे ज्ञान नहीं परन्तु एण्ड्रॉय्ड में नेटिव कीबोर्ड लगाया जा सकता है काफ़ी समय से यह उपलब्ध है।

    और रही इंस्क्रिप्ट की बात तो वाकई गूगल ने इस मामले में गूफ़-अप कर दिया लेकिन ऐसा नहीं है कि विकल्प नहीं हैं। इन दो स्क्रीनशॉट्स को देखिए - गो कीबोर्ड - स्विफ़्ट-की - इन दोनों में इंस्क्रिप्ट लेआऊट है। एक मुफ़्त है दूसरे के पैसे लगते हैं। इनके अतिरिक्त और भी मिल जाएँगे इंस्क्रिप्ट वाले।

    एक अन्य चीज़ जो पता नहीं एप्पल वाले हिन्दी कीबोर्ड के साथ है या नहीं - ऑटो करेक्ट। ये जो मैंने दो एण्ड्रॉय्ड वाले कीबोर्ड बतलाए हैं दोनो में वर्ड प्रेडिक्शन आता है तो टाईपिंग और अधिक आसान हो जाती है, दो-तीन अक्षर टाईप कर पूरा शब्द टाईप हो जाता है और दोनों का ही प्रेडिक्शन सिस्टम काफ़ी अच्छा है, स्विफ़्ट-की तो अंग्रेज़ी तथा अन्य भाषाओं में इसी के लिए खास लोकप्रिय है, इसका हिन्दी कीबोर्ड अभी बीटा टैस्टिंग में है।

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    1. स्विफ्ट और गो कीबोर्ड, दोनों पर ही टाइपिंग करने का अभ्यास किया है। स्विफ्ट में बहुत छोटे अक्षर गढ़े हैं, गो फिर भी तनिक ठीक है। सैमसंग में अधिक तेज प्रोसेसर होने के बाद भी एक definite time lag आ रहा था, आईफोन 4S की तुलना में।

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    2. आपने कौन सा डिवाइस प्रयोग किया? गो कीबोर्ड और स्विफ़्ट की के अक्षर लगभग समान ही हैं। मुझे अपने गैलेक्सी एस२ और नेक्सस ७ दोनों पर ही कोई समस्या नहीं होती टाइप करने में। कदाचित्‌ हो सकता है कि आदत पड़ गई है! ;)

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  43. हिन्दी के विभिन्न रूप और प्रयोग भी एक बड़ी समस्या है.

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  44. सार्थकता लिये सशक्‍त प्रस्‍तु‍ति ....
    आभार

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  45. बहुत अच्छा पोस्ट.

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